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NEP 2020 — पाँच वर्ष पूरे : क्या बदला, क्या बाधित है!

हिंदुस्तान मिरर न्यूज़, दिल्ली।

पाँच साल पहले संसद ने 2020 की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) को अंतरिम रूप से देश की शैक्षिक दिशा बदलने वाला दस्तावेज़ घोषित किया। अब जब नीति के लागू होने को पाँच वर्ष पूरे हो चुके हैं, तो यह आकलन जरूरी है कि किन लक्ष्यों पर प्रगति हुई, किन पहलुओं का क्रियान्वयन सफल रहा और कहाँ अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।


प्रमुख लक्ष्य — क्या हासिल करने की बात थी?

NEP 2020 का मूल उद्देश्य शिक्षा को केवल साक्षरता तक सीमित न रखकर समग्र विकास, वैश्विक प्रतिस्पर्धा और समावेशिता सुनिश्चित करना था। नीति के कुछ ठोस लक्ष्यों में प्रमुख थे:

  • प्री-प्राइमरी (ECCE) से माध्यमिक (कक्षा 10) तक 2030 तक सकल नामांकन दर (GER) — 100% तक पहुँचाना;
  • उच्च शिक्षा में 2035 तक GER — 50% तक ले जाना;
  • पाठ्यक्रम और आकलन-ढाँचे का पुनर्गठन (5+3+3+4 संरचना), मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा, तथा शिक्षा–व्यवसायिकता और प्रौद्योगिकी का समेकन;
  • एबीसी (Academic Bank of Credits) और मल्टी-एंट्री/मल्टी-एग्ज़िट व्यवस्था के माध्यम से लचीली उच्च शिक्षा;
  • शिक्षक प्रशिक्षण व मूल्यांकन सुधार; और समावेशी शिक्षा पर जोर।

लागू हुई मुख्य पहलें — जो जमीन पर दिख रही हैं

  1. 5+3+3+4 संरचना अपनाई गई — प्री-प्राइमरी से सेकेंडरी तक शिक्षा की नई श्रेणियाँ लागू की गईं।
  2. एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (ABC) और नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क के पायलट कार्य आरंभ हुए — पढ़ाई के क्रेडिट स्टोर करने का तंत्र बन रहा है।
  3. CUET (कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट) का विस्तार — विश्वविद्यालय स्तरीय प्रवेश में केंद्रीकरण की दिशा में कदम।
  4. चार वर्षीय यूजी कार्यक्रम कुछ केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राज्यों में शुरू हुआ — मल्टी-एंट्री/एग्ज़िट का विकल्प दिया गया।
  5. प्राथमिक शिक्षा सुधार और NIPUN Bharat / राष्ट्रीय मिशन — प्रारम्भिक स्तर पर भाषा-संख्यात्मक कौशल सुधारने के उद्देश्य से पायलट और संसाधन (जैसे “जादुई पिटारा” किट) लागू किए गए।
  6. उच्चतम संस्थानों (IIT/IIM आदि) के अंतरराष्ट्रीय कैंपस खुलने के कुछ उदाहरण भी देखने को मिले।
  7. परख (PARAKH) जैसे होलिस्टिक मूल्यांकन मॉडल तथा बोर्ड परीक्षा में दो बार वर्ष में आयोजित करने की परिकल्पना पर चर्चा/तैयारी चल रही है।

इन पहलों से नीति के कई सिद्धांत धरातल पर आना शुरू हुए हैं — विशेषत: शिक्षा के लचीलापन, समग्र आकलन और प्रारम्भिक शिक्षा पर विशेष फोकस।


किन लक्ष्यों में प्रगति सीमित रही / क्या कमी है?

(1) पहुँच व नामांकन: स्कूल स्तर पर शुरूआती सुधार तो दिखे, पर 2030 के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए व्यापक कवायद और संसाधन चाहिए। उच्च शिक्षा में GER को 50% पर ले जाना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।

(2) शिक्षक प्रशिक्षण और एनसीएफटी: शिक्षक तैयार करना—नया प्रशिक्षण फ्रेमवर्क (NCFTE) और प्रशिक्षण-सामग्री का व्यापक क्रियान्वयन अभी अधूरा है। आईटीईपी/बीएड संशोधन के संक्रमण से कई संस्थानों में समन्वय समस्याएँ नजर आ रही हैं।

(3) केंद्र-राज्य समन्वय व राजनीतिक वैरिएंट: NEP के कई प्रावधानों — विशेषकर त्रिभाषा फार्मूला और कुछ पाठ्यक्रम बदलावों — पर कुछ राज्यों (मुख्यतः दक्षिणी एवं कुछ पूर्वी राज्य) की आपत्ति और असहमति के कारण क्रियान्वयन बाधित हुआ। केन्द्र और राज्यों के बीच वित्तीय और नीति-स्तरीय टकराव भी दखल दे रहे हैं।

(4) विधायी पहल — HECI/कानूनी ढाँचा: उच्च शिक्षा संस्थानों के नियमन हेतु प्रस्तावित HECI बिल और कुछ अन्य विनियमन अधर में पड़े रहे — जिससे संस्थागत पुनर्रचना धीमी रही।

(5) समेकित कार्यान्वयन व वित्त: कई योजनाओं के लिये नीतिगत घोषणाएँ हुईं, पर अपर्याप्त वित्त, लॉजिस्टिक चुनौतियाँ और प्रशासनिक बाधाएँ निहित लक्ष्यों की गति धीमी कर रही हैं।


आंकड़ों पर एक नज़र

कुछ रिपोर्टों और राष्ट्रीय निगरानी के अनुसार प्रारम्भिक शिक्षा में भाषा-सम्बंधी साक्षरता में सुधार दिखा (कुछ आँकड़े लगभग 64% स्तर का संकेत देते हैं), पर गणितीय साक्ष्य और ऊंचे स्तर के समावेशन में सुधार अभी और आवश्यक है। (नोट: राज्यवार तथा विषयवार आँकड़े भिन्न हैं।)


प्रमुख विवाद और राजनीतिक आयाम

  • त्रिभाषा नीति: अंग्रेज़ी/क्षेत्रीय भाषा/हिंदी के संयोजन को लेकर तमिलनाडु सहित कुछ राज्यों ने इसे ‘हिंदी थोपने’ के रूप में देखा; सुप्रीम कोर्ट तक भी मामले गए।
  • केंद्र-राज्य टकराव: कुछ राज्यों ने NEP का कुछ भाग स्वीकार नहीं किया और केन्द्र ने समेकित शिक्षा निधि सीमित कर दी—जिससे दोनो पक्षों में तनातनी बढ़ी।
  • BEd/ITEP संक्रमण: शिक्षक शिक्षा के चार वर्षीय मॉडल के संक्रमण में संस्थागत प्रतिरोध और संसाधन चुनौती बनी।

इन विवादों ने नीति के समान रूप से उन्नत कार्यान्वयन में बाधा डाली है।


विशेषज्ञ क्या कहते हैं — सिफारिशें और आगे का रास्ता

  1. केंद्र-राज्य वार्ता और सहमति — नीति के संवेदनशील प्रावधानों पर स्थायी सहमति बनाना अनिवार्य है।
  2. शिक्षक सामर्थ्य वृद्धि — टीचर ट्रेनिंग के लिए बड़े पैमाने पर निवेश और NCFTE का त्वरित क्रियान्वयन आवश्यक।
  3. वित्तीय प्रतिबद्धता बढ़ाना — दीर्घकालिक आवंटन के साथ राज्यों को सहयोग देना होगा।
  4. नियमित निगरानी व डेटा-आधारित मूल्यांकन — ABC, CUET, परख आदि पहलों पर पारदर्शी डेटा-रिपोर्टिंग से रियल-टाइम सुधार होगा।
  5. स्थानीयता और मातृभाषा पर ठोस कार्यक्रम — प्राथमिक स्तर पर क्षेत्रीय भाषाओं के साथ अंग्रेज़ी कौशल का संतुलन बनाना।

निष्कर्ष — नीति सफल हो सकती है पर यह एक दीर्घकालिक कार्य है

NEP 2020 ने भारतीय शिक्षा की रूपरेखा बदलने के लिये दूरगामी लक्ष्य निर्धारित किये। पाँच वर्षों में कुछ अहम परिवर्तन और प्रयोग सफल हुए हैं — पर नीति की वास्तविक सफलता क्रियान्वयन, वित्त, शिक्षक तैयारियों और केंद्र-राज्य संवाद पर निर्भर करेगी। यह स्पष्ट है कि NEP का भावी प्रभाव तब तक सीमित रहेगा जब तक राज्यों, अकादमिक संस्थानों और प्रशासकीय मशीनरी के बीच ठोस समन्वय और लगातार संसाधन प्रवाह सुनिश्चित नहीं हो पाता।

देश की शिक्षा नीति को ‘कागज़ से कक्षा तक’ प्रभावी बनाने के लिये अब समन्वित, पारदर्शी और धैर्यपूर्ण कार्यान्वयन की सख्त आवश्यकता है — तभी NEP के तात्कालिक लक्ष्यों के साथ-साथ 21वीं सदी की भारतीय शिक्षा का सपना साकार हो सकेगा।


रिपोर्ट — हिंदुस्तान मिरर न्यूज़, शिक्षा डेस्क

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