भारत में दवाओं की गुणवत्ता पर बड़ा खुलासा: तीन साल में 9,000 से अधिक दवाएं घटिया पाई गईं, 951 नकली या मिलावटी
नई दिल्ली: भारत में दवाओं की गुणवत्ता को लेकर गंभीर चिंताएं सामने आई हैं। सरकार ने राज्यसभा में खुलासा किया है कि बीते तीन वर्षों में देशभर में 3 लाख से अधिक दवाओं के सैंपल टेस्ट किए गए, जिनमें से 9,000 से ज्यादा दवाएं घटिया क्वालिटी की पाई गईं। इतना ही नहीं, 951 दवाएं ऐसी थीं जो या तो पूरी तरह से नकली थीं या उनमें मिलावट की गई थी। यह आंकड़े न केवल दवा उद्योग की स्थिति पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि आम जनता की सेहत को लेकर भी गहरी चिंता उत्पन्न करते हैं।
सरकार द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024-25 में सबसे ज्यादा 3,104 दवाएं गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतर सकीं। यह संख्या बताती है कि स्थिति में सुधार के बजाय और गिरावट देखी गई है। दवाओं की गुणवत्ता की जांच स्वास्थ्य सुरक्षा की पहली पंक्ति मानी जाती है और इतने बड़े स्तर पर दवाओं का घटिया पाया जाना देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
दवा निर्माण इकाइयों पर भी कार्रवाई
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी कि दिसंबर 2022 से देशभर में दवा निर्माण इकाइयों का जोखिम आधारित निरीक्षण शुरू किया गया है। इस पहल के अंतर्गत अब तक 905 दवा निर्माण इकाइयों की जांच की गई, जिनमें से 694 मामलों में कार्रवाई की गई है। इन कार्रवाइयों में उत्पादन पर रोक (स्टॉप प्रोडक्शन ऑर्डर), लाइसेंस निलंबन अथवा रद्द करना शामिल है। यह कदम सरकार की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य के साथ किसी प्रकार का समझौता स्वीकार्य नहीं है।
दिल्ली के अस्पतालों में घटिया दवाओं की आपूर्ति पर सीबीआई जांच
इस पूरे मामले का एक और गंभीर पक्ष दिल्ली सरकार से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2024 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली के अस्पतालों में आपूर्ति की गई कथित घटिया दवाओं की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) से कराने का आदेश दिया था। यह मामला तब उठा जब उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने वर्ष 2023 में गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर जांच की सिफारिश की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि दिल्ली सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों और मोहल्ला क्लीनिकों में वितरित की गई दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गई थीं और आम लोगों के जीवन के लिए खतरा बन सकती थीं।
स्वास्थ्य सुरक्षा पर संकट
इन खुलासों से यह स्पष्ट है कि देश की दवा निगरानी प्रणाली को और अधिक कठोर बनाने की जरूरत है। नकली, मिलावटी या घटिया दवाएं न केवल इलाज को निष्प्रभावी बनाती हैं, बल्कि लोगों के जीवन के लिए भी गंभीर खतरा उत्पन्न करती हैं। केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम जैसे निरीक्षण प्रणाली और कड़ी कार्रवाई सराहनीय हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि निगरानी व्यवस्था को और तकनीकी रूप से मजबूत करना होगा।
इस पूरे मामले ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि दवा उद्योग में पारदर्शिता, जिम्मेदारी और गुणवत्ता नियंत्रण बेहद जरूरी है। यदि समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट देश की स्वास्थ्य नीति के लिए एक बड़े खतरे का रूप ले सकता है।