हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:27 जुलाई 2025
बिहार में मतदाता सूची से 65 लाख नामों के हटाए जाने की प्रक्रिया ने राज्य में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में राजनीतिक और सामाजिक हलचल पैदा कर दी है। यह प्रक्रिया राज्य के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के तहत की जा रही है, जिसका पहला चरण शनिवार को समाप्त हो गया। भारत निर्वाचन आयोग द्वारा जारी बुलेटिन के अनुसार, हटाए जाने वाले नामों की संख्या राज्य के कुल पंजीकृत मतदाताओं के लगभग 9% के बराबर है।
विवादास्पद सत्यापन अभियान की पृष्ठभूमि
यह सत्यापन अभियान राज्य भर में घर-घर जाकर किया गया, जिसमें बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) ने मतदाताओं की उपस्थिति, पहचान और अन्य विवरणों को भौतिक रूप से सत्यापित किया। अभियान का उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन और त्रुटिरहित बनाना बताया गया, लेकिन विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने इसे एकतरफा और पक्षपातपूर्ण करार दिया है। इसे लेकर विरोध प्रदर्शन हुए हैं और अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है।
नाम हटाने के कारण
चुनाव आयोग के अनुसार, जिन 65 लाख नामों को हटाया जा सकता है, उनके पीछे निम्नलिखित प्रमुख कारण हैं:
- मृत मतदाता: लगभग 22 लाख ऐसे मतदाताओं की पहचान हुई है जिनकी मृत्यु हो चुकी है, लेकिन उनके नाम अभी भी मतदाता सूची में दर्ज हैं।
- दोहराव: करीब 7 लाख ऐसे मतदाता हैं जिनके नाम दो या अधिक स्थानों पर पंजीकृत पाए गए हैं।
- प्रवासन या पता न चलना: सबसे बड़ी संख्या, लगभग 35 लाख मतदाता ऐसे हैं जो स्थायी रूप से राज्य से बाहर चले गए हैं या उनका कोई सटीक पता नहीं मिल पाया।
आगे की प्रक्रिया
इस विशेष पुनरीक्षण अभियान का पहला चरण पूरा हो चुका है और अब 1 अगस्त को नई मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। इसके बाद एक महीने का समय लोगों को दिया जाएगा, जिसमें वे अपने नाम जोड़ने, हटाने या सुधार करवाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह दावा और आपत्ति का समय होगा जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को मतदाता सूची में अपनी स्थिति को लेकर आपत्ति दर्ज करने का अधिकार होगा।
अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को जारी की जाएगी, जो आगामी विधानसभा चुनावों के लिए आधार बनेगी।
कानूनी और राजनीतिक पहलू
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में इस अभियान का बचाव करते हुए कहा है कि यह मतदाता सूची की पवित्रता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। आयोग का दावा है कि यह एक पारदर्शी और निर्धारित प्रक्रिया के तहत किया गया कार्य है।
हालांकि, अब तक आयोग ने अंतिम और स्पष्ट आंकड़े जारी नहीं किए हैं। तकनीकी समस्याओं और डेटा के केंद्रीकरण में आ रही दिक्कतों के कारण पूरी जानकारी रविवार या सोमवार तक जारी किए जाने की संभावना है।
यदि ये सभी 65 लाख नाम वाकई अंतिम सूची से हटा दिए जाते हैं, तो यह देश में अब तक की सबसे बड़ी मतदाता सूची शुद्धिकरण की प्रक्रिया बन सकती है। चुनाव आयोग पारदर्शिता और निष्पक्षता की दुहाई दे रहा है, वहीं विरोधी दल और नागरिक समाज इसे चुनाव से पहले एक संदिग्ध कार्रवाई मान रहे हैं। आने वाले दिनों में यह मामला और तूल पकड़ सकता है, खासकर जब इसकी कानूनी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी और अंतिम आंकड़े सामने आएंगे।