भारत में ग्रामीण महिलाओं की स्थिति एक जटिल विषय है, जिसमें कई चुनौतियाँ और सकारात्मक बदलाव दोनों शामिल हैं। ग्रामीण महिलाएं भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो कृषि, घरेलू कामों और कई अन्य अनौपचारिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
चुनौतियाँ:
- आर्थिक निर्भरता और शोषण:
- ग्रामीण महिलाएं अक्सर पुरुषों पर आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं, खासकर जब उनके पास भूमि या उत्पादक संपत्तियों का स्वामित्व नहीं होता।
- कृषि क्षेत्र में उनकी मेहनत को अक्सर कम आंका जाता है और उन्हें कम मजदूरी मिलती है, जिससे आर्थिक शोषण होता है।
- कई ग्रामीण महिलाएं अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, जहाँ उनके श्रम अधिकारों का अक्सर उल्लंघन होता है।
- शिक्षा का अभाव और निरक्षरता:
- ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा सुविधाओं की कमी और लड़कियों की शिक्षा के प्रति नकारात्मक पारिवारिक दृष्टिकोण के कारण महिला साक्षरता दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम है।
- कम शिक्षा के कारण उन्हें बेहतर रोजगार के अवसर नहीं मिल पाते और वे अपने अधिकारों और सरकारी योजनाओं के प्रति कम जागरूक रहती हैं।
- सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ:
- पितृसत्तात्मक समाज और रूढ़िवादी विचार ग्रामीण महिलाओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया, सार्वजनिक जीवन और यहां तक कि त्योहारों में भी पूरी तरह से भाग लेने से रोकते हैं।
- जातिगत बंधन और धार्मिक निषेध भी उनकी स्थिति को प्रभावित करते हैं।
- बाल विवाह अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में एक गंभीर समस्या है, जिससे लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- स्वास्थ्य और स्वच्छता:
- ग्रामीण महिलाओं को अक्सर अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं का सामना करना पड़ता है। एनीमिया, कुपोषण और बार-बार गर्भधारण के कारण उनके स्वास्थ्य का स्तर निम्न होता है।
- शौचालयों की कमी और खुले में शौच की मजबूरी स्वच्छता से जुड़ी गंभीर समस्याएँ पैदा करती हैं, खासकर महिलाओं के लिए जो रात में शौच के लिए बाहर निकलने को मजबूर होती हैं।
- निर्णय लेने में भागीदारी की कमी:
- भले ही ग्रामीण महिलाएं घर और कृषि का अधिकांश भार वहन करती हैं, लेकिन पारिवारिक या सामुदायिक स्तर पर निर्णय लेने में उनकी भागीदारी अक्सर सीमित होती है।
- महिला मुखिया वाले परिवारों की संख्या कम है, हालांकि गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों में यह संख्या थोड़ी अधिक है। सकारात्मक बदलाव और सशक्तिकरण के प्रयास:
- सरकारी योजनाएँ और नीतियाँ:
- स्वतंत्रता के बाद से, ग्रामीण महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए कई सरकारी योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जैसे मनरेगा (MGNREGS), दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY), प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना आदि।
- मनरेगा ने ग्रामीण महिलाओं को भुगतान वाले रोजगार के अवसर प्रदान किए हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ी है।
- स्वयं सहायता समूह (SHGs):
- महिला स्वयं सहायता समूहों ने ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये समूह महिलाओं को एकजुट होकर आर्थिक गतिविधियों में शामिल होने, कौशल विकास करने और निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं।
- इन समूहों के माध्यम से महिलाएं उद्यमिता और आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं।
- शिक्षा का प्रसार:
- सरकार के प्रयासों और जागरूकता बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्रों में महिला साक्षरता दर में वृद्धि हुई है। शिक्षा महिलाओं को अपनी क्षमताओं को पहचानने और समाज में अपनी भूमिका निभाने में मदद कर रही है।
- पंचायती राज में भागीदारी:
- पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण ने ग्रामीण स्तर पर महिला नेतृत्व को उभारा है। इससे महिलाएं स्थानीय शासन और विकास प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं।
- जागरूकता और अधिकारों के प्रति सचेतता:
- धीरे-धीरे ग्रामीण महिलाएं अपने स्वास्थ्य, पोषण और अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक हो रही हैं।
- हालांकि अभी भी चुनौतियां हैं, लेकिन महिलाएं अब केवल शिक्षिका या नर्स तक सीमित न रहकर इंजीनियर, पायलट, वैज्ञानिक, तकनीशियन, सेना और पत्रकारिता जैसे नए क्षेत्रों में भी अपनी योग्यता प्रदर्शित कर रही हैं।
भारत में ग्रामीण महिलाओं की प्रस्थिति में पिछले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं, विशेष रूप से शिक्षा, आर्थिक भागीदारी और निर्णय लेने में उनकी भूमिका के संदर्भ में। हालांकि, अभी भी लैंगिक भेदभाव, आर्थिक असमानता और सामाजिक रूढ़ियों जैसी गहरी जड़ें जमाई हुई चुनौतियां मौजूद हैं। ग्रामीण महिलाओं के पूर्ण सशक्तिकरण के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देने वाले निरंतर और एकीकृत प्रयासों की आवश्यकता है। उनके योगदान को मान्यता देना और उन्हें समान अवसर प्रदान करना “नए भारत” के निर्माण के लिए आवश्यक है।
बुटा सिंह,
सहायक आचार्य,
ग्रामीण विकास विभाग,
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली