• Home
  • नई दिल्ली
  • नई दिल्ली: 25 जून 1975 – जब भारत का लोकतंत्र जंजीरों में जकड़ा गया
Image

नई दिल्ली: 25 जून 1975 – जब भारत का लोकतंत्र जंजीरों में जकड़ा गया

हिन्दुस्तान मिरर न्यूज: बुधवार 25 जून 2025

नई दिल्ली: 25 जून 1975 की वह काली रात भारतीय इतिहास में एक दुखद अध्याय के रूप में दर्ज है, जब लोकतंत्र को कुचलकर आपातकाल का अंधेरा छा गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आधी रात को रेडियो पर देश को संबोधित करते हुए संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की। यह फैसला बिना कैबिनेट की मंजूरी के रातोंरात लिया गया, और राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने मध्यरात्रि में इस पर हस्ताक्षर कर देश को तानाशाही के दौर में धकेल दिया।

आपातकाल की पृष्ठभूमि: भ्रष्टाचार और सत्ता का संकट
उस समय देश में भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एक जबरदस्त जनांदोलन चल रहा था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी थी, जिससे उनकी सत्ता खतरे में पड़ गई थी। जयप्रकाश नारायण की आवाज जनता को एकजुट कर रही थी, और सत्ता के खिलाफ असंतोष की लहर तेज हो रही थी। ऐसे में आपातकाल एक हथियार बन गया, जिसने लोकतंत्र को बंधक बना लिया।

लोकतंत्र पर हमला: अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा
आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। बोलने की आजादी छीन ली गई, प्रेस पर सेंसरशिप का ताला जड़ दिया गया। अखबारों को हर खबर प्रकाशित करने से पहले सरकारी मंजूरी लेनी पड़ती थी। कई पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया, और समाचार पत्रों के दफ्तरों पर ताले डाल दिए गए। कुछ अखबारों ने सेंसरशिप के विरोध में अपने संपादकीय पन्ने खाली छोड़कर मूक विद्रोह किया। लोग सच जानने के लिए तरस गए।

विपक्षी नेताओं जैसे जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, और जॉर्ज फर्नांडीस को रातोंरात जेल में डाल दिया गया। जेलें इतनी भर गईं कि जगह कम पड़ने लगी। पत्रकारों, लेखकों और कलाकारों तक को नहीं बख्शा गया। आपातकाल सिर्फ अपराधियों के खिलाफ नहीं, बल्कि हर उस आवाज के खिलाफ था, जो सत्ता से सवाल पूछती थी।

जनता का प्रतिरोध और लोकतंत्र की जीत
21 महीने तक चले इस आपातकाल के दौरान देश के गली-नुक्कड़ और चौक-चौराहों पर लोकतंत्र की बहाली के नारे गूंजने लगे। इंदिरा गांधी के तानाशाही रवैये के खिलाफ जनता ने हिम्मत नहीं हारी। 21 मार्च 1977 को आपातकाल का अंत हुआ, जब इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा की। उन्हें शायद भरोसा था कि जनता उनके साथ है, लेकिन 1977 के आम चुनाव में जनता ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी।

इस जीत में उन लाखों लोगों का योगदान था, जिन्होंने जेलों में यातनाएं झेलीं, सड़कों पर प्रदर्शन किए, और अपनी आवाज बुलंद की। जनता ने लोकतंत्र की ताकत दिखाते हुए इंदिरा गांधी की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया।

Releated Posts

संविधान दिवस : बच्चों में संवैधानिक मूल्यों का अनुप्राणन और सभ्य-समतावादी समाज का निर्माण

भारत का संविधान केवल एक विधिक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि राष्ट्र की सामूहिक आत्मा, आकांक्षा और आदर्शों का जीवित…

ByByHindustan Mirror NewsNov 23, 2025

सऊदी अरब में दर्दनाक बस हादसा: 42 भारतीयों की जलकर मौत

हिन्दुस्तान मिरर न्यूज: नई दिल्ली, हिन्दुस्तान मिरर न्यूज। सऊदी अरब में सोमवार को हुए एक भयावह सड़क हादसे…

ByByHindustan Mirror NewsNov 17, 2025

📰 हमास की बर्बरता : गाज़ा में अपने ही नागरिकों की पब्लिक एक्सीक्यूशन!

हिंदुस्तान मिरर न्यूज़, अंतरराष्ट्रीय डेस्क |गाज़ा पट्टी में सीजफायर के बाद शांति की उम्मीद थी, लेकिन हालात इसके…

ByByHindustan Mirror NewsOct 15, 2025

राहुल गांधी ने मृतक आईपीएस वाई पूरनकुमार के परिवार से की मुलाकात, बोले- तुरंत हो गिरफ्तारी

नई दिल्ली, हिन्दुस्तान मिरर न्यूज। कांग्रेस नेता राहुल गांधी मंगलवार को चंडीगढ़ पहुंचे, जहां उन्होंने बीते दिनों आत्महत्या…

ByByHindustan Mirror NewsOct 14, 2025

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top