हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
लोकसभा में ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने पर हुई विशेष चर्चा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम का आध्यात्मिक, भावनात्मक और क्रांतिकारी मंत्र बताया। उन्होंने कहा कि यह गीत केवल एक राष्ट्रगीत नहीं, बल्कि भारतीयता, त्याग, ऊर्जा और संघर्ष का जीवंत प्रतीक रहा है।
अज़ादी की लड़ाई में वंदे मातरम की शक्ति
मोदी ने कहा कि वंदे मातरम ने 1857 के बाद देश को अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ एकजुट किया। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 19वीं सदी में लिखे गए इस गीत ने आनंद मठ, बंगाल विभाजन 1905, स्वदेशी आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियों को नई दिशा दी। उन्होंने कहा कि लंदन के इंडिया हाउस से लेकर भारत की धरती तक, यह गीत स्वतंत्रता की लड़ाई का धड़कता हुआ घोष रहा।
धार्मिक-सांस्कृतिक मूलों से जुड़ा राष्ट्रभाव
प्रधानमंत्री ने वंदे मातरम को वैदिक परंपरा—“माता भूमि पुत्रोऽहम पृथिव्या”—का आधुनिक स्वरूप बताया। उनके अनुसार भारत माता केवल संस्कृति, ज्ञान और समृद्धि की देवी नहीं, बल्कि अन्याय के विरुद्ध उठ खड़ी होने वाली शक्ति का भी प्रतीक है। इसलिए यह गीत राजनीतिक आज़ादी के साथ-साथ भारत की सभ्यता-संस्कृति के पुनर्जागरण का आह्वान है।
गांधी, सावरकर और क्रांतिकारियों का गीत
मोदी ने कहा कि महात्मा गांधी ने वंदे मातरम को लगभग राष्ट्रीय गान का दर्जा दिया था। वीर सावरकर, बिपिन चंद्र पाल, अरविंद घोष, भीकाजी कामा, सुब्रमण्य भारती, मास्टर सूर्यसेन सहित अनेक क्रांतिकारियों ने कठोर यातनाओं और फांसी के क्षणों में भी “वंदे मातरम” का जयघोष किया। इससे यह स्वतंत्रता संघर्ष का आत्मिक नारा बन गया।
कांग्रेस और मुस्लिम लीग पर ऐतिहासिक अन्याय का आरोप
भाषण में मोदी ने कांग्रेस पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मुस्लिम लीग के दबाव में कांग्रेस ने वंदे मातरम के साथ अन्याय किया, इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगाए और गीत को “टुकड़ों में बांटा।” यह मानसिकता आगे चलकर देश के विभाजन तक पहुंची।
विकसित भारत 2047 का संकल्प
मोदी ने कहा कि वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ नई पीढ़ी को इसकी आत्मा से जोड़ने का अवसर है। उन्होंने सांसदों और जनता से आग्रह किया कि वे इसे केवल स्मरण न करें, बल्कि “रण-स्वीकार” का मंत्र मानकर आत्मनिर्भर और विकसित भारत के निर्माण में योगदान दें।













