हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर ऐतिहासिक वक्तव्य देते हुए इसे मात्र एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, स्वाभिमान और स्वतंत्रता संघर्ष की पहचान बताया। उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान लाखों भारतीयों के दिलों में हिम्मत की लौ जलाई और आज भी यह राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाली प्रेरक शक्ति है।
आज़ादी के संघर्ष में वंदे मातरम् की निर्णायक भूमिका
अमित शाह ने बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ‘वंदे मातरम्’ की रचना-भूमि को याद करते हुए कहा कि उस समय गुलामी की बेड़ियां बेहद कठोर थीं। ऐसे दौर में यह गीत युवाओं, क्रांतिकारियों और आम लोगों के भीतर साहस और स्वतंत्रता की चाह को प्रज्वलित करता रहा। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में जितने भी प्रभावशाली नारे गूंजे, उनमें ‘वंदे मातरम्’ सबसे शक्तिशाली बनकर उभरा।
गृह मंत्री के अनुसार, अंग्रेज़ भी इस उद्घोष से भयभीत रहते थे क्योंकि यह गीत भारतीयों में अपार जोश जगाता था। कई क्रांतिकारी फांसी के तख्ते पर चढ़ते समय भी ‘वंदे मातरम्’ का नारा लगाते थे, जिससे यह गीत त्याग, साहस और बलिदान की अनंत प्रतीक-ध्वनि बन गया।
राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक चेतना का संवाहक
अमित शाह ने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ में भारतभूमि को मां के रूप में देखने की भावनात्मक शक्ति है, जो किसी राजनीतिक विचारधारा से परे है। उन्होंने कहा कि यह देशभक्ति का स्वाभाविक प्रदर्शन है और इसका उद्देश्य किसी समुदाय या समूह के खिलाफ न होकर भारतीयता का उत्सव मनाना है।
उन्होंने यह भी कहा कि समय-समय पर इस गीत को लेकर उठाए गए विवाद राष्ट्र की एकता को कमजोर करते हैं। शाह के मुताबिक ‘वंदे मातरम्’ भारत की सांस्कृतिक विरासत का वह सूत्र है जो भाषा, प्रदेश और आस्था—सबको एक धागे में जोड़ता है।
नई पीढ़ी को इतिहास से जोड़ने की अपील
अमित शाह ने अपने भाषण में खासतौर पर युवाओं से आह्वान किया कि वे ‘वंदे मातरम्’ के बोल ही नहीं, बल्कि उसके पीछे छिपे संघर्ष और बलिदान की कहानियों को भी जानें। उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीकी युग में भी राष्ट्रभक्ति की जड़ों को मजबूत रखने में ऐसे गीतों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गृह मंत्री ने सुझाव दिया कि स्कूलों, कॉलेजों और विभिन्न संस्थानों में ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर विशेष कार्यक्रम, वाद-विवाद और सांस्कृतिक आयोजन किए जाएं ताकि नई पीढ़ी इस गीत की ऐतिहासिक आत्मा को समझ सके। उनके अनुसार, जब युवा ‘वंदे मातरम्’ को केवल गीत नहीं, बल्कि भारत की शक्ति के प्रतीक के रूप में देखेंगे, तभी ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का सपना साकार होगा।













