हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
चीन और रूस भले ही आज रणनीतिक साझेदार हों, लेकिन दोनों देशों के बीच 1857 से चली आ रही जमीनों को लेकर पुरानी खींचतान एक बार फिर सुर्खियों में है। रिपोर्टों के मुताबिक चीन अब चुपचाप रूस की उन जमीनों पर दावा मजबूत कर रहा है, जिन्हें वर्षों पहले किंग राजवंश ने रूसी साम्राज्य को सौंप दिया था। इनमें प्रमुख हैं — साइबेरियाई शहर वालदिवोस्तोक, अमूर क्षेत्र और टुमैन नदी का द्वीप।
चीन की मौन रणनीति
अमेरिकी आउटलेट न्यूजवीक के अनुसार, चीन अपने मानचित्रों और आधिकारिक दस्तावेजों में इन क्षेत्रों को अब भी अपने दृष्टिकोण से दिखा रहा है। पर्यटन मंत्रालय ने भी सभी स्थानों को चीनी नजरिए से दर्शाने का फरमान जारी किया है। चीन यह सब इसलिए साइलेंट तरीके से कर रहा है ताकि रूस को उसकी मंशा का अहसास न हो और दोनों देशों के रिश्तों में खटास न आए।
रणनीतिक महत्व वाला टुमैन नदी द्वीप
चीन टुमैन नदी के द्वीप पर नियंत्रण हासिल कर जापान पर दबाव बढ़ाना चाहता है। यह नदी जापान सागर में गिरती है, इसलिए चीन मानता है कि इस क्षेत्र पर कब्जा मिलने से वह जापान के समुद्री रास्तों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डाल सकता है। जापान को चीन लंबे समय से अपना रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी मानता है।
1855 से 1915 तक रूस को मिली 10 लाख हेक्टेयर जमीन
ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो 1855 से 1915 के बीच रूस को चीन के हिस्से की लगभग 10 लाख हेक्टेयर जमीन मिली। 1858 में रूस ने अमूर क्षेत्र हासिल किया और 1860 में बीजिंग संधि के तहत उसे वालदिवोस्तोक मिला। यह शहर करीब 4 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। इसके बाद 1914 में रूस ने तुवा क्षेत्र पर भी कब्जा कर लिया।
कूटनीति या धोखे के जरिए जमीन वापस पाने की कोशिश
चीन इन क्षेत्रों को वापसी की कई बार कोशिश कर चुका है, लेकिन अब तक उसे कोई सफलता नहीं मिली। अब वह किसी नई संधि या कूटनीतिक चाल के जरिए इन जमीनों पर नियंत्रण पाने की रणनीति बना रहा है। हालांकि 2008 के बाद से इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच कोई औपचारिक वार्ता नहीं हुई है, लेकिन चीन ने अपने दावे को छोड़ने का संकेत भी कभी नहीं दिया।














