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ग्रामीण भारत : विकास की ओर बढ़ता आत्मनिर्भरता का मजबूत स्तंभ – बूटा सिंह

हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 15 मई : 2025,

नई दिल्ली: ग्रामीण भारत केवल भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि देश की आत्मा भी है। इसकी मिट्टी में समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, पारंपरिक ज्ञान और सामुदायिक सहयोग की स्वस्थ जड़ें बसती हैं। यहाँ के लोग वर्षों से कृषि, हस्तशिल्प और पारंपरिक उद्योगों से अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं, जिससे देश की सांस्कृतिक धरोहर सुदृढ़ हुई है।

ग्रामीण भारत की पहचान उसकी विविधता में है। यहाँ की संस्कृति, भाषा, और परंपराएँ हर क्षेत्र में अलग-अलग रूप में देखने को मिलती हैं। यह विविधता न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करती है, बल्कि ग्रामीण समुदायों के बीच आपसी सहयोग और सामंजस्य को भी बढ़ावा देती है।

भारतीय सरकार ग्रामीण विकास मंत्रालय के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास पर जोर देती है। इस मंत्रालय की पहलों में बुनियादी ढांचा, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के प्रयास शामिल हैं। विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत महिलाओं के सशक्तिकरण, कौशल विकास, और आधुनिकीकरण के प्रयास हो रहे हैं, जिससे ग्रामीण भारत आज तेजी से प्रगति कर रहा है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण), और दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना जैसी योजनाएँ ग्रामीण भारत में गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इन योजनाओं के माध्यम से न केवल बुनियादी सुविधाओं में सुधार हुआ है, बल्कि ग्रामीण समुदायों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी कदम उठाए गए हैं।

इसके साथ ही, डिजिटल इंडिया जैसे अभियानों के चलते ग्रामीण इलाकों में तकनीकी नवाचार और सूचना की पहुँच में भी सुधार हुआ है। स्मार्ट एग्रीकल्चर, दूरस्थ शिक्षा और सीमांत क्षेत्रीय विकास के माध्यम से न सिर्फ उत्पादकता में वृद्धि हुई है, बल्कि पारंपरिक धरोहरों को आधुनिकता के साथ जोड़ने का प्रयास भी सामने आया है। इन पहलों के द्वारा स्थानीय समुदायों को आर्थिक और सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में निरंतर कदम उठाए जा रहे हैं।

ग्रामीण भारत की सांस्कृतिक विरासत भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ के लोकगीत, लोकनृत्य, हस्तशिल्प, और पारंपरिक कला रूप न केवल भारत की सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करते हैं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी योगदान देते हैं। इन कलाओं को संरक्षित करने और उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास किए जा रहे हैं।

ग्रामीण भारत के विकास में सहकारी आंदोलन भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सहकारी समितियाँ न केवल किसानों और कारीगरों को आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं, बल्कि उन्हें अपने उत्पादों को बेहतर बाजार तक पहुँचाने में भी मदद करती हैं।

Buta Singh
Assistant Professor
Department of Rural Development, IGNOU, New Delhi

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