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“प्रेम विवाह करने भर से नहीं मिलेगा सुरक्षा का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट”

हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 16 अप्रैल: 2025,

अपनी मर्जी से प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों को कोर्ट से नहीं मिलेगा स्वतः सुरक्षा का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

प्रयागराज – इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि महज अपनी मर्जी से प्रेम विवाह कर लेने वाले जोड़ों को स्वतः पुलिस या कोर्ट से सुरक्षा पाने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई वास्तविक खतरा न हो, तो इस प्रकार के प्रेमी जोड़े सुरक्षा की मांग नहीं कर सकते।

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि न्यायालय केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप करेगा जहां किसी प्रकार की हिंसा, धमकी या जान-माल का गंभीर खतरा हो। यदि प्रेमी जोड़े को समाज या परिवार से कोई वास्तविक खतरा नहीं है, तो उन्हें स्वयं परिस्थितियों का सामना करना चाहिए।

कोर्ट की टिप्पणी:
“कोर्ट ऐसे युवाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नहीं बनी है, जिन्होंने अपनी मर्जी से शादी कर ली हो। सुरक्षा के लिए उन्हें वास्तविक खतरे का प्रमाण देना होगा।”

प्रकरण का विवरण:
यह फैसला श्रीमती श्रेया केसरवानी व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया। याचिका में विपक्षियों द्वारा वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप किए जाने की आशंका जताते हुए पुलिस सुरक्षा की मांग की गई थी।

हालाँकि, कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने न तो किसी प्रकार की एफआईआर दर्ज करवाई है, न ही कोई ऐसा प्रमाण प्रस्तुत किया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि उन्हें विपक्षियों से शारीरिक या मानसिक खतरा है। साथ ही बीएनएसएस की धारा 173(3) के तहत भी कोई आपराधिक मामला नहीं दर्शाया गया है।

कोर्ट
जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि याचिका में दिए गए तथ्यों से कोई गंभीर या वास्तविक खतरे की स्थिति स्पष्ट नहीं होती, अतः पुलिस सुरक्षा देने का कोई आधार नहीं बनता।


इस फैसले के माध्यम से हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महज समाज के विरोध की आशंका के आधार पर सुरक्षा नहीं दी जा सकती। प्रेमी जोड़ों को अपने निर्णय की जिम्मेदारी लेते हुए हालात का सामना करना होगा, जब तक कि किसी वास्तविक खतरे के प्रमाण सामने न आएं।

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