दिल्ली हाईकोर्ट के जमानत आदेश को चुनौती देने का फैसला, उन्नाव रेप केस फिर सुर्खियों में
नई दिल्ली।हिन्दुस्तान मिरर न्यूज: उन्नाव रेप केस में भारतीय जनता पार्टी के निष्कासित नेता कुलदीप सिंह सेंगर को बड़ी राहत देने वाले दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अब केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रही है। सीबीआई ने स्पष्ट किया है कि वह सेंगर की उम्रकैद की सजा निलंबित कर जमानत देने के आदेश को चुनौती देगी। इसे न्याय की लड़ाई में एक अहम मोड़ माना जा रहा है, क्योंकि मामला केवल एक आरोपी की रिहाई नहीं, बल्कि पीड़िता की सुरक्षा और न्याय व्यवस्था की साख से जुड़ा है।

दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश और शर्तें
दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर को अपने आदेश में कहा था कि निचली अदालत द्वारा दिसंबर 2019 में दी गई उम्रकैद की सजा के खिलाफ सेंगर की अपील अभी लंबित है, इसलिए सजा निलंबित करते हुए उन्हें जमानत पर रिहा किया जा सकता है। हालांकि अदालत ने सख्त शर्तें भी लगाईं—सेंगर पीड़िता के निवास स्थान से पाँच किलोमीटर के दायरे में नहीं आएंगे और न ही पीड़िता या उसकी मां को किसी तरह की धमकी देंगे। शर्तों के उल्लंघन पर जमानत स्वतः रद्द हो जाएगी।
फिलहाल जेल में ही रहेंगे सेंगर
हालांकि हाईकोर्ट के इस आदेश के बावजूद कुलदीप सेंगर की तत्काल रिहाई नहीं होगी। वह दुष्कर्म पीड़िता के पिता की हिरासत में हुई मौत से जुड़े एक अन्य मामले में 10 साल की सजा काट रहे हैं और उस मामले में उन्हें अभी जमानत नहीं मिली है। यानी कानून का शिकंजा फिलहाल ढीला नहीं पड़ा है।
पीड़िता का विरोध और सियासी समर्थन
सीबीआई का सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला 25 वर्षीय पीड़िता द्वारा दिल्ली में किए गए विरोध प्रदर्शन के बाद सामने आया। पीड़िता ने न्याय की गुहार लगाते हुए कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और सोनिया गांधी से भी मुलाकात की। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा कि दुष्कर्म पीड़िता के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार होना चाहिए और उसे डर के माहौल में जीने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने इस फैसले को “बेहद निराशाजनक और शर्मनाक” बताया।
“यह फैसला हमारे लिए मौत से कम नहीं”
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक पीड़िता ने कहा, “अगर ऐसे मामले में दोषी को जमानत मिल जाती है तो देश की बेटियां कैसे सुरक्षित रहेंगी? यह फैसला हमारे लिए ‘काल’ से कम नहीं है।” गौरतलब है कि 2017 में जब यह अपराध हुआ था, तब पीड़िता नाबालिग थी। अब पूरा देश सुप्रीम कोर्ट के अगले कदम पर निगाहें टिकाए बैठा है—क्योंकि यहां सवाल सिर्फ कानून का नहीं, इंसाफ का भी है।
















