हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
उत्तर प्रदेश के मदरसों में कामिल (स्नातक) और फाजिल (स्नातकोत्तर) कोर्स में अध्ययन कर रहे करीब 32,000 छात्रों का भविष्य सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अनिश्चितता में है। उच्चतम न्यायालय ने राज्य मदरसा शिक्षा परिषद द्वारा इन डिग्रियों को प्रदान करने के अधिकार को यूजीसी अधिनियम का उल्लंघन मानते हुए पिछले वर्ष 5 नवंबर 2024 को इसे “असंवैधानिक” घोषित कर दिया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे डिग्री प्रदान करने का अधिकार केवल यूजीसी द्वारा विनियमित विश्वविद्यालयों को ही है।
वाराणसी स्थित मदरसा जामिया फारुकिया में फाजिल प्रथम वर्ष उत्तीर्ण कर चुके सकलैन रजा अब अपना करियर बचाने के लिए काशी विद्यापीठ से बी.ए. करने जा रहे हैं। रजा कहते हैं कि आलिम कोर्स होने के कारण उन्हें बी.ए. में प्रवेश मिल जाएगा, लेकिन कामिल के तीन वर्ष और फाजिल का एक वर्ष बर्बाद होना तय है।
सिद्धार्थनगर के मदरसा दारुल उलूम फैज-उर-रसूल के छात्र गुलाम मसीह भी विश्वविद्यालय से बी.ए. और एम.ए. कर अपने करियर को सुरक्षित करने की सोच रहे हैं। कई छात्र अदालत में लंबित उस मामले पर भी उम्मीद लगाए बैठे हैं जिसमें कामिल–फाजिल छात्रों को ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय से संबद्ध कराने की मांग की गई है।
छात्रों की परेशानी—पढ़ाई रुकी, साल बर्बाद
मऊ के मदरसा तालीमुद्दीन के छात्र मोहम्मद साद निजामी बताते हैं कि उन्होंने फरवरी 2024 में फाजिल प्रथम वर्ष की परीक्षा दी थी, लेकिन तब से पढ़ाई ही बंद है। उनके दो साल पहले ही बर्बाद हो चुके हैं। वे कहते हैं कि “अब समझ नहीं आ रहा कि पढ़ाई जारी रखें, नौकरी करें या कारोबार शुरू करें।”
सरकार समाधान पर विचार कर रही है
अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी ने कहा कि सरकार सभी कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है और जल्द कोई निर्णय लेगी। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि कामिल–फाजिल डिग्री के आधार पर अनुदानित मदरसों में कार्यरत शिक्षकों की नौकरी सुरक्षित रहेगी।
अदालत में याचिका—भाषा विश्वविद्यालय से संबद्धता की मांग
टीचर्स एसोसिएशन मदारिस-ए-अरबिया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की है कि मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय से संबद्ध किया जाए, ताकि उनकी परीक्षाएं व डिग्रियाँ नियमित रूप से जारी रह सकें। याचिका पर कोर्ट ने 30 मई को सरकार, यूजीसी, भाषा विश्वविद्यालय और मदरसा बोर्ड से जवाब मांगा है।
कठिनाई—महंगी फीस वहन करना मुश्किल
संगठन के महासचिव दीवान साहब ज़मां खां का कहना है कि अधिकतर मदरसा छात्र गरीब परिवारों से आते हैं, इसलिए निजी विश्वविद्यालयों या कॉलेजों की महंगी फीस भरना उनके लिए लगभग असंभव है।
कुछ विशेषज्ञों का विरोध
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली का मानना है कि मदरसा बोर्ड का पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय स्तर का नहीं है, इसलिए बीच सत्र में छात्रों को भाषा विश्वविद्यालय से जोड़ना अव्यावहारिक होगा। उनका सुझाव है कि छात्रों को विश्वविद्यालय में नए सिरे से डिग्री कोर्स में प्रवेश दिया जाए।













