हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिव्यांगजनों के सम्मान और उनकी सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कड़े कानून बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि दिव्यांगों का मजाक उड़ाने, उन्हें नीचा दिखाने या उनके खिलाफ अपमानजनक कंटेंट प्रसारित करने को रोकने के लिए एससी/एसटी एक्ट की तर्ज पर सख्त कानून बनाने पर विचार किया जाए।
अदालत ने यह टिप्पणी एक कार्यक्रम में दिव्यांग व्यक्तियों का बेहूदा मजाक उड़ाने के मामले की सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने इस पर हर्जाने के तौर पर निर्देश दिया कि संबंधित कंटेंट क्रिएटर्स अपने प्लेटफॉर्म पर दिव्यांग व्यक्तियों की सफलता की कहानियां प्रदर्शित करें, ताकि समाज में सकारात्मक जागरूकता फैले।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामला केवल अश्लीलता तक सीमित नहीं है, बल्कि कई लोग सोशल मीडिया और यूट्यूब पर विकृत (perverse) यूजर-जेनरेटेड कंटेंट (UGC) प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसकी कोई नियामक व्यवस्था नहीं है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने चिंता जताते हुए कहा कि “किसी को न किसी के प्रति जवाबदेह होना ही होगा।”
इसी दौरान कोर्ट ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील, आपत्तिजनक या गैर-कानूनी कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए एक स्वतंत्र, तटस्थ और स्वायत्त निकाय की जरूरत बताई। अदालत ने कहा कि मीडिया कंपनियों द्वारा अपनाया गया स्व-नियमन मॉडल प्रभावी नहीं है और व्यापक निगरानी तंत्र की आवश्यकता है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बताया कि दिव्यांगजनों के खिलाफ अपमानजनक कंटेंट से निपटने के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन दिशानिर्देशों को सार्वजनिक डोमेन में जारी करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की।
सुनवाई के दौरान अदालत ने प्रदूषण के मुद्दे पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि दिल्ली-एनसीआर की खराब वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए कोर्ट कोई “जादुई आदेश” नहीं दे सकती। न्यायालय ने कहा कि वैज्ञानिक स्तर पर ही धुंध और प्रदूषण के कारणों का सटीक आकलन किया जा सकता है।













