हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
राज्य सरकार शहरों में सालों से जर्जर हो चुके भवनों के पुनर्विकास के लिए नई पुनर्विकास नीति लाने की तैयारी कर रही है। इस नीति का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में पुराने, असुरक्षित और आर्थिक दृष्टि से अनुपयोगी भवनों को नए निर्माण के माध्यम से उपयोगी बनाना है। सूत्रों के अनुसार सरकार जल्द ही ऐसी अनुमति देने जा रही है, जिसमें न्यूनतम 1500 वर्ग मीटर भूमि वाले भूखंडों पर पुराने भवनों को गिराकर मिश्रित उपयोग वाली ऊंची इमारतें विकसित की जा सकेंगी।
नीति का मकसद न केवल शहरों की खूबसूरती बढ़ाना है, बल्कि प्राइम लोकेशन पर स्थित पुराने भवनों के पुनर्विकास से प्रदेश की अर्थव्यवस्था को गति देना भी है। नीति में यह भी प्रस्ताव है कि ऐसे निर्माण में निम्न आय वर्ग (LIG) तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लोगों के लिए 10-10 प्रतिशत आवास रखना अनिवार्य होगा।
बंद और रुग्ण उद्योगों के लिए भी राहत
सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि बंद पड़े उद्योगों या रुग्ण इकाइयों को भी नीति के आधार पर पुनर्जीवित करने की अनुमति दी जा सकती है। वहीं, ऐसे उद्योग जो विस्तार के लिए शहर से बाहर स्थानांतरित करना चाहते हैं, उन पर भी विचार संभव है।
कौन से भवन आएंगे दायरे में?
प्रस्तावित नीति के अनुसार:
- केवल 25 वर्ष से अधिक पुराने भवन शामिल होंगे।
- स्ट्रक्चरल ऑडिट के बाद ही पुनर्विकास की मंजूरी।
- एकल आवास / एकल भवन नीति में शामिल नहीं होंगे।
- लीज पर आवंटित भूमि को पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं मिलेगी।
- न्यूनतम भू-क्षेत्र 1500 वर्ग मीटर होना अनिवार्य।
विकास शुल्क में बड़ी छूट संभव
सूत्रों के अनुसार, विकास शुल्क में 50% की छूट, भू-उपयोग परिवर्तन पर 25% छूट और जोन रेग्युलेशन के इतर उपयोग पर 25% प्रभाव शुल्क में राहत दी जा सकती है। इस नीति से मध्यम और निम्न आय वर्ग के आवासों की उपलब्धता बढ़ने और शहरों में आधुनिक शहरीकरण को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
मुंबई, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पहले ही पुनर्विकास मॉडल लागू किए जा चुके हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश भी अब इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है।

















