डॉ. ऋषिकेश सिंह
सहायक आचार्य
हिंदी विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
हिंदी दिवस हमें हर वर्ष यह स्मरण कराता है कि हमारी आत्मा जिस भाषा में गाती है, रोती है और सपने देखती है, वह है हिंदी। यह केवल अक्षरों का जाल नहीं, बल्कि हमारी धड़कनों की गूंज है, हमारी मिट्टी की महक है और हमारी संस्कृति की सबसे प्रगाढ़ अभिव्यक्ति है।
भारत का स्वाधीनता संग्राम जब अपने उफान पर था, तब हिंदी केवल भाषा नहीं रही, बल्कि वह क्रांति की मशाल बन गई। बाबू सम्पूर्णानंद की दृष्टि, महावीर प्रसाद द्विवेदी की कलम, गणेश शंकर विद्यार्थी की निर्भीकता और महात्मा गांधी का आह्वान — इन सबने हिंदी को उस ऊँचाई पर पहुँचा दिया, जहाँ वह जनमानस की धड़कन बन गई। गांधीजी ने ठीक ही कहा था कि हिंदी ही वह कड़ी है, जो भारत के विविध प्रांतों को एक सूत्र में पिरो सकती है।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने हिंदी को नवजागरण की संजीवनी दी। उन्होंने दिखाया कि हिंदी केवल बोलचाल की भाषा नहीं, बल्कि विचार, संवेदना और संघर्ष की वाहक भी हो सकती है। वहीं सरस्वती जैसी पत्रिकाओं ने साहित्यिक चेतना का दीपक जलाया, जिसने हिंदी गद्य और कविता को नई उड़ान दी।
आज समय बदल गया है, लेकिन हिंदी का स्वर और भी गूंजदार हो गया है। अब यह केवल कागजों या मंचों तक सीमित नहीं, बल्कि इंटरनेट की दुनिया में भी अपनी अनूठी पहचान बना रही है। सोशल मीडिया पर हिंदी की लोकप्रियता, फिल्मों और गीतों की मिठास, और साहित्य की नई धाराएँ यह साबित करती हैं कि हिंदी तन–मन की नहीं, बल्कि पूरे जीवन की भाषा है।
हिंदी वह धूप है, जिसमें भारतीय अस्मिता की गर्माहट महसूस होती है। यह वह छाँव है, जिसमें हम अपने इतिहास और भविष्य को एक साथ सहेजते हैं। हिंदी केवल बोलचाल का माध्यम नहीं, बल्कि वह आईना है जिसमें हमारी आत्मा का प्रतिबिंब झलकता है।
इसलिए हिंदी दिवस केवल उत्सव नहीं, एक संकल्प है—अपनी जड़ों को याद रखने का, अपनी संस्कृति को संजोने का और अपनी भाषा को और अधिक समृद्ध बनाने का। हिंदी ही वह नाड़ी है, जिससे भारत की जीवंतता बहती है। यह हमारे तन की सांस है, मन की धड़कन है और जीवन का संगीत है।

















