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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट का गिरफ्तारी पर ऐतिहासिक फैसला, बिना कारण गिरफ्तारी असंवैधानिक

हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 12अप्रैल: 2025,

प्रयागराज में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी के नियमों को लेकर एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार करना असंवैधानिक है और यह संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि गिरफ्तारी से पहले व्यक्ति को गिरफ्तारी का कारण और आधार स्पष्ट रूप से बताया जाए। यह आदेश जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने रामपुर के मंजीत सिंह उर्फ इंदर की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।

कोर्ट के प्रमुख निर्देश

  • बिना कारण गिरफ्तारी असंवैधानिक: हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को बिना ठोस कारण और आधार के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। ऐसा करना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन भी है।
  • संविधान और कानून का पालन अनिवार्य: कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 22(1) और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 47 के प्रावधानों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया। अनुच्छेद 22(1) व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारण जानने और कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार देता है, जबकि धारा 47 पुलिस को गिरफ्तारी के समय प्रक्रियात्मक नियमों का पालन करने के लिए बाध्य करती है।
  • गिरफ्तारी मेमो में कारण अनिवार्य: कोर्ट ने मंजीत सिंह के मामले में पाया कि उनकी गिरफ्तारी के मेमो में न तो कारण बताया गया था और न ही कोई आधार उल्लेखित था। यह प्रक्रिया सीआरपीसी की धारा 50 और संविधान के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन थी। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए 26 दिसंबर 2024 के गिरफ्तारी आदेश को रद्द कर दिया।
  • DGP को सर्कुलर जारी करने का आदेश: हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) को निर्देश दिया कि वे सभी जिला पुलिस प्रमुखों के लिए एक सर्कुलर जारी करें। इस सर्कुलर में वैधानिक प्रावधानों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने और पुलिस अधिकारियों को प्रक्रियात्मक नियमों का उल्लंघन न करने की हिदायत दी जाए।
  • कानूनी सहायता का अधिकार: कोर्ट ने जोर देकर कहा कि गिरफ्तारी के समय व्यक्ति को कानूनी सहायता प्राप्त करने का अवसर देना उसका मौलिक अधिकार है। मंजीत सिंह को न्यायिक हिरासत में भेजते समय प्रतिवाद का मौका न देना भी कोर्ट ने गलत माना।

मामले का विवरण

यह फैसला रामपुर के मंजीत सिंह उर्फ इंदर की याचिका पर आया, जिन्हें पुलिस ने बिना ठोस कारण और आधार के गिरफ्तार किया था। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता और अपर शासकीय अधिवक्ता परितोष मालवीय की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने पाया कि गिरफ्तारी प्रक्रिया में कई खामियां थीं। पुलिस ने पहले से छपे प्रोफार्मा पर गिरफ्तारी मेमो तैयार किया था, जिसमें कोई विशिष्ट कारण नहीं लिखा गया था। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को न तो गिरफ्तारी के आधार की जानकारी दी गई और न ही उसे कानूनी सहायता का अवसर प्रदान किया गया।

कोर्ट की टिप्पणी

जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने कहा, “हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि याचिकाकर्ता को दिए गए गिरफ्तारी मेमो में न तो आधार और न ही कारण बताया गया। यह संविधान और कानून के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है।” कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए और भविष्य में ऐसी गलतियों को रोकने के लिए सख्त निर्देश जारी किए।

व्यापक प्रभाव

इस फैसले का उत्तर प्रदेश की पुलिस व्यवस्था और नागरिकों के अधिकारों पर व्यापक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। यह फैसला पुलिस की मनमानी पर लगाम लगाने और गिरफ्तारी की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस आदेश से पुलिस को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाना होगा और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करना होगा।

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